Astrology : आज से सावन के महीने की शुरुआत हो गई है । सावन के महीने की शुरुआत के साथ ही शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं के लिए तैयारियां पूरी कर ली गई हैं । सुबह से ही लोग दर्शन के लिए लाइन में लगे नज़र आये । वहीं धाम परिसर हर-हर महादेव के जयकारे से गूंजा ।

Astrology आज से सावन महीने की शुरुआत
आज शुक्रवार 11 जुलाई 2025 से पूरे देश में सावन महीने की शुरुआत हो गई है। यह महीना भगवान शिव को समर्पित माना जाता है, आज से पूरे एक महीने तक भक्त शिवजी की पूजा-अर्चना, व्रत, रुद्राभिषेक और जल चढ़ाने में लीन रहते हैं। सावन के पहले दिन से ही शिवालयों में भक्तों का रेला देखा गया। बड़ी संख्या में श्रद्धालु भोले बाबा का जलाभिषेक करने के लिए भोर से शिवालयों में लाइन में लगे नज़र आये । पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शिववास योग में भगवान शिव माता पार्वती के साथ कैलाश पर्वत पर विराजमान रहते हैं। इस खास योग में जो भी श्रद्धालु और कांवरिए सच्चे मन से भगवान शिव का जलाभिषेक करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उनके जीवन में सौभाग्य, सुख-शांति और समृद्धि आती है। सावन में भगवान शिव की पूजा किसी भी दिन, किसी भी समय की जा सकती है। इस मास में शिव पूजन, व्रत, रुद्राभिषेक,और मंत्रजाप विशेष फलदायी माने जाते हैं। हर सोमवार को श्रावण सोमवार व्रत रखा जाता है,जो विशेष रूप से मनोकामना पूर्ति के लिए किया जाता है। सावन का महीना भगवान शिव का सबसे प्रिय महीना माना जाता है। पूरे सावन माह में शिवजी की आराधना होती है। भगवान विष्णु के चार माह के लिए योग निद्रा में जाने से सृष्टि का संचालन सावन के एक महीने में महादेव करते हैं। हिंदू धर्म में सावन के महीने को बहुत ही शुभ और पवित्र माना जाता है।
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सावन सोमवार और कब-कब
इस वर्ष सावन माह में चार सावन सोमवार व्रत रखे जाएंगे। श्रावण माह का पहला सोमवार व्रत 14 जुलाई को, दूसरा सावन सोमवार 21 जुलाई को, तीसरा सावन सोमवार 28 जुलाई को और चौथा सावन सोमवार 04 अगस्त को रहेगा।
सावन में ही क्यों होती है शिवजी की पूजा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय जब देवता और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो चौदह रत्नों के साथ कालकूट विष भी निकला। यह विष इतना प्रचंड और घातक था कि उससे तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। तब समस्त देवताओं और ऋषियों के आग्रह पर भगवान शिव ने इस विष को अपनी कंठ में धारण किया जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया और वे ‘नीलकंठ’ कहलाए। विष के प्रभाव को शांत करने के लिए देवताओं ने उन्हें गंगाजल अर्पित किया और बेलपत्र, धतूरा, आक आदि से उनका अभिषेक किया। मान्यता है कि यह समुद्र मंथन श्रावण मास में ही हुआ था। इसलिए इस मास में शिवजी का जलाभिषेक, बेलपत्र अर्पण, उपवास, रुद्राभिषेक और महामृत्युंजय मंत्र का जाप अत्यंत फलदायक माना गया है।