Wednesday, June 4, 2025
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अगर 70 के बाद भी रहना है जवां, तो आज से ही शुरू करें ये एक काम

Yoga Tips in Hindi : आज बढ़ती उम्र में हो रही बीमारियां आधुनिक जीवनशैली की देन हैं जिनसे हर इंसान परेशान है। चाहे वह बड़ा हो या छोटा हो क्योंकि बड़े भी दिन-भर पैसा कमाने के लिए रात-दिन काम कर रहे है। 12-12 घंटे बैठकर कम्प्यूटर पर काम करना हो या रोज काम के लिए चार घंटे गाड़ी से आना-जाना पड़े, जीवनशैली को पूरा करने के लिए कार्य करते है जिसके कारण समय पर खाना और नाश्ता भी नहीं हो पाता है ज्यादा बैठा कर काम करने से भी कमर दर्द होने लगता है।

किसी के पास आज अपने लिये कोई समय नहीं है बस हर समय काम चाहे आफिस हो या घर हो काम करना है। इस व्यस्तता भरी जिंदगी में उसके जागने और सोने का भी कोई समय नहीं होता है  और न ही खाने पीने का कोई सही समय जहां जो मिला खा लिया और खान- पान संतुलित नहीं होने से पेट में समस्या होने से हमेशा हमारे अंदर बेचैनी सी बनी रहती है, क्योकि आजकल घर पर भी खाना बनाना बहुत मुश्किल हो रहा है और घर का खाना ज्यादा पंसद भी नहीं आता है आज घर के खाने को छोड़कर लोग ज्यादातर जंक फूड /फास्ट फूड खाना ज्यादा पसंद करते हैं। जिसके कारण अनेक प्रकार के रोगों से ग्रस्त हो रहे हैं जैसे मोटापा ,तनाव , हृदय रोग , जोड़ो के दर्द और कमर दर्द की भी समस्या हो रही है।

आहार नियमों के विपरीत भोजन करने वाले लोग भी अक्सर परेशान रहते है, ज्यादातर  जंक फूड/फास्ट फूड  जैसे समोसा , पिज्जा , चाउमीन , बर्गर, रोल, चाउमीन , पैटीज , मोमोज, इन सभी ने आज के खान-पान पर अपना कब्जा कर लिया है आजकल संतुलित आहार छोडकर जंक फूड/फास्ट फूड खाना ज्यादा पसंद भी करते है। लेकिन शायद यह पता नहीं है कि जंक फूड अक्सर खाने से हमारा शरीर शिथिल हो जाता है और हमारा शरीर हमेशा थका हुआ महसूस होता है ज्यादा जंक फूड खाने से दिल की बीमारी एवं तनाव भी बहुत बढ़ जाता है तनाव एक बहुत ही छोटा शब्द है दिखाई नहीं देता है लेकिन अंदर ही अंदर इंसान को तोड देता है व्यक्ति शारीरिक एंव मानसिक दोनों तरह से बीमार होता चला जाता है इसी तरह मोटापा और कमर दर्द भी इंसान की जिंदगी में अनेक रोगों का कारण बनता है जैसे डायबिटीज ,कैसर , हदयरोग , डिप्रेसन की समस्याओं एवं अनेक प्रकार के रोग होने लगते है।

आज दवा की दुकान की संख्या दिन बा दिन बढ़ती जा रहीं है और हर दवा की दुकान पर भीड़ लगी रहती है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितने ज्यादा लोग बीमार हो रहे है और जितने ही अस्पताल है सब में भीड़ ही लगी रहती है । इससे बचने के लिए फास्ट फूड और जंक फूड को कम करें या खाने से बचें और घर का भोजन  और मौसमी फल और मौसमी साग -सब्जी जरूर  खायें कुछ समय प्रकृति के साथ जरूर बिताये यह जीवन जीने की एक अलग खुशी देता है सुबह सूरज निकले से पहले उठे उगता सूरज एक नई ऊर्जा और नई प्रेरणा और एक सकारात्मक ऊर्जा और आत्मविश्वास देता है जिससे हमारा शरीर मजबूत होता है। कई सारेे रोगों से लडने की शक्ति मिलती है। सुबह सूरज की किरणों से विटामिन  डी मिलता है जिससे हमारी हडिडया और मजबूत होती है और हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है जिससे बढ़ती उम्र में स्वस्थ और निरोगी रहे ।

Yoga Tips for beginners

बढ़ती उम्र बीमारियों से बचने के लिए कुछ सरल योग एवं प्राणायाम (Yoga Tips for beginners) इस प्रकार है।

Types Of Yoga Poses in Hindi

ताड़ासन

ताड़ शब्द का अर्थ है  ताड़ या खजूर का पेड़ । इस आसन के अभ्यास से स्थायित्व व शारीरिक दृृढ़ता प्राप्त होती है यह खड़े होकर किये जाने वाले सभी आसनों का आधार है । इसलिए ताड़ासन (Yoga Tips) को नियमित करना चाहिए।

Yoga Tips
अभ्यास की विधि

1. सर्वप्रथम पैरों के बल खड़े हो जाएं तथा दोनों पैरों के बीच दो इंच की दूरी रखें ।
2. सांस अंदर ले हाथों को सामने की ओर कंधो के स्तर से तक उठाए ।
3. दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में एक-दूसरे में फसाएं तथा हथेलियों को बाहर की ओर श्वास भरते हुए दोनों भुजाओं को सिर से ऊपर उठाएं।
4. भुजाओं को ऊपर ले जाने के साथ -साथ पैर की एड़ियों को जमीन से ऊपर उठाएं और पैर की अंगुलियों पर अपना संतुलन बनाएं । इस स्थिति में अपनी क्षमतानुसार रूकें रहें।
5. एड़ियों को वापस जमीन पर ले आएं।
6. श्वास को छोड़ते हुए हाथ की अंगुलियों को अलग- अलग करें ,भुजाओं को वापस लाएं , इसके बाद प्रारंभिक स्थिति में वापस आ जाएं।

लाभ
शारीरिक लाभ

इस आसन के नियमित अभ्यास से शरीर में स्थिरता आती है। यह मेरूदण्ड से सम्बन्धित नाड़ियों के रक्त संचय को ठीक करने में भी सहायक है। किशोरों के शरीर की ऊॅचाई बढ़ती है।

मानसिक लाभ

व्यक्ति तनाव रहित होता है उसकी एकाग्रता बढ़ती है । मानसिक शांति मिलती है।

सावधानियां एवं सीमाएं

जिन व्यक्तियों को आर्थराइटिस तथा चक्कर आने जैसी समस्याएं हो उन्हें एड़ियों पर उठने पर प्रयास नहीं करना चाहिए। अन्तिम स्थिति में रूकने की समय सीमा अपने सामथ्र्यानुसार  रखनी चाहिए ।

सेतुबंधासन

सेतुबंधासन शब्द का अर्थ सेतु का निर्माण है । इस आसन में शरीर की आकृृति ऐक सेतु की अवस्था में रहती है इसलिए इसका नाम सेतुबंधासन (Yoga Tips) नाम दिया गया है।

अभ्यास विधि

1. दोनों पैरों को घुटनों से मोड़तेे हुए एड़ियों को नितंबों के पास लाएं ।
2. हाथों से पैर के टखनों को मजबूती से पकड़े और घुटने एवं पैरों को एक सीध में रखें।
3. श्वास को अंदर खींचते हुए धीरे-धीरे अपने नितंब एवं धड को ऊपर की ओर उठाएं और पुलनुमा आकृृति बनाएं।
4. अपनी क्षमतानुसार रूकें और सांस लेते रहें । स्वास छोडते हुए धीरे -धीरे अपनी मूल अवस्था में आएं और शवासन में लेटकर शरीर को शिथिल छोड़ दें। कम से कम यह अभ्यास तीन बार करेें ।

लाभ

1. अवसाद एवं चिता से मुक्त करता है कमर के निचले हिस्से की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है।
2. इसके नियमित अभ्यास से पाचन क्षमता बढ्रती है। पाचन तंत्र में सुधार होने से शरीर स्वस्थ रहता है घुटनों के लिए भी यह अच्छा होता है।
3. उदर के अंगो में कसावट लाता है तथा उदर के समस्त रोगों में हितकारी है। जठराग्नि को तीव्र बनाता है।
4. पेट में गैस बनने की शिकायत दूर कर शरीर को स्फूर्तिवान्् तथा आकर्षक बनाता है।

सावधानियां

1.  अल्सर और हार्निया से ग्रसित व्यक्तियों को इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए ।

त्रिकोणासन

त्रिकोणासन शब्द का अर्थ त्रि अर्थात तीन कोणों वाला आसन (Yoga Tips) है चूंकि आसन के अभ्यास के समय धड़, बाहुओं एवं पैरों से बनी आकृृति त्रिभुज के सदृृश्य दिखाई देती है, इसलिए इस अभ्यास को त्रिकोणासन कहते है।

Yoga Tips

अभ्यास विधि

1. त्रिकोणासन के अभ्यास के समय दोनों पैरों को 3 फुट तक फैलाकर आराम से खड़ा होना चाहिए।
2. दोनों हाथों को बगल से कंधों के स्तर तक धीरे -धीरे उठाना चाहिए।
3. श्वास को शरीर से बाहर छोड़ते हुए धीरे -धीरे दाई तरफ झुकना चाहिए । झुकने के बाद दांए हाथ की उंगलियों को पीछे की ओर रखना चाहिए।
4. बायें हाथ को सीधे ऊपर की ओर रखते हुए दायें हाथ की सीध में लाना चाहिए। तत्पश्चात बाई हथेली को आगे की ओर लाना चाहिए।
5. सिर को घुमाते हुए बाएं हाथ की बीच वाली अगंुली को देखना चाहिए।
6. समान्य श्वास लेते हुए इस आसन में अपनी क्षमतानुसार रूकना चाहिए।
7. श्वास शरीर के अंदर लेते हुए प्रारंभिक अवस्था में वापस आ जाय ।
8. इस आसन को दूसरी ओर भी करना चाहिए।

लाभ

मेरूदण्ड को लचीला बनाता है , पिण्डली ,जाघों और कटि भाग की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है तथा फेफड़ो की कार्यक्षमता को बढ़ाता है।

सावधानियां एवं सीमाएं

1. स्लिप्ड डिस्क , साइटिका एवं उदर में किसी प्रकार की सर्जरी होने के बाद इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
2. शरीर की क्षमता तथा सीमा से परे जाकर  यह अभ्यास न करें तथा शरीर को सीमा से अधिक न खीचें।
3.  अभ्यास करते समय यदि आप जमीन को न छू सकेें तो घुटनों को छूनों का प्रयास करें । कभी भी जबरजस्ती शरीर के साथ न करें । क्षमतानुसार ही नीचे झुकें ।

सर्वागासन

इस आसन को करने से शरीर के सभी अंगो को लाभ मिलता है इसलिए इस आसन को सर्वागासन (Yoga Tips) कहा जाता है।

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अभ्यास की विधि

1. इस  आसन को करने के लिए सबसे पहले पीठ के बल लेट जाएं। एक साथ अपने पैरों कूल्हे और फिर कमर को उठाएॅ। शरीर का पूरा भार आपके कन्धों पर आ जाये। अपनी पीठ से अपने हाथों से सहारा दें।
2. अपनी दोनोें कोहनियोेे को पास में लें आयें और हाथों को पीठ के साथ रखें ,कन्धों को सहारा देते रहें । कोहनियों को जमीन पर दबाते हुए और दोनों हाथों को कमर पर रखते हुए अपनी कमर और पैरों को सीधा रखें। शरीर को सीधा करें शरीर का पूरा भार आपके दोनों कन्धों व हाथों के ऊपरी हिस्से पर होना चाहिए न कि आपके सिर और गर्दन पर । अपनी क्षमतानुसार इस आसन में रूके रहें।
3. अपने दोनों पैरों को सीधा व मजबूत रखेें। अपने पैरों कि उॅंगलियों को नाक की सीध में लें आयें । अपनी गर्दन पर ध्यान दें उसको जमीन पर न दबाएं गर्दन को मजबूत रखेें और मासपेशियों को सिकोड लेें अपनी छाती को ठोडी से लगा लें । गर्दन में दर्द महसूस हो रहा है तो आसन से धीरे -धीरे बाहर आ जाय।
4. लंबी गहरी सांस लें जितनी देर इस आसन में रह सकते है अपनी क्षमतानुसार बने रहे।
5. आसन से बाहर आने के लिए घुटनों को धीरे से माथे के पास लें कर आयें हाथोें को जमीन पर रखें । बिना सिर को उठाये धीरे -धीरे कमर को नीचे लेकर आये तथा दोनों पैरों को जमीन पर लें जाए। और पैरों को सीध कर लेट जाए एक लम्बी गहरी सांस ले कुछ देर विश्राम करें।

लाभ

1. इस आसन को नियमित करने से रक्त- संचार की दिशा परिवर्तित होकर रक्त आसानी से हृदय की ओर दौडने लगता है । इस आसन सेे हृदय रोगियों को विशेष लाभ व आराम मिलता है।
2. हाथों व कन्धों को मजबूत बनाता है और पीठ को अधिक लचीला बनाता है।
3. कब्ज से राहत देता है और पाचन क्रिया को सक्रिय बनाता है।
4. महिलाओं और पुरूषों के प्रजनन अंगों को स्वस्थ ,सबल व विकसित करता है।
5. मोटापा ,बंध्यापन, प्रदर आदि रोगों को दूर कर महिलाओं को स्वस्थ व सुडौल बनाता है।

सावधानियां

गर्भावस्था ,माहवारी ,उच्च रक्तचाप हृदय रोग में योग विशेषज्ञ की देखरेख में ही करें।

अन्यथा न करें।

भुजंगासन

भुजंग का अर्थ सांप अथवा नाग है । इस आसन में शरीर की आकृृति सांप के फन की तरह ऊपर उठती है जिसके कारण इस आसन को भुजंगासन (Yoga Tips) कहते है।

अभ्यास विधि

1.  सर्वप्रथम पेट के बल लेट जाएं और अपने दोंनो हाथों पर सिर टिकाते हुए शिथिल रखें ।
2. अब  अपने दोनों पैरों को आपस में मिला लें।
3. हाथों को शरीर के ठीक बगल में ऐसा रखें कि हथेलियां और कोहनियंा जमीन पर टिके रहें।
4. श्वास को धीरे -धीरे अंदर खीचते हुए ठुडडी और नाभि क्षेत्र तक शरीर को ऊपर उठाएं । अपनी क्षमतानुसार  होल्ड करें। पुनः वापस लौटते हुए ललाट को जमीन पर टिकाएं।
5. यह सरल भुजंगासन कहा जाता है
6. हथेलियों को वक्ष के बगल में रखें और कोहनियां ऊपर की ओर उठी  हुई होनी चाहिए।
7. धीरे -धीरे श्वास को भरते हुए ठुडडी एवं नाभि क्षेत्र तक के शरीर को ऊपर उठाएं रखंे ।
8. पुनः श्वास को बाहर छोड़ते हुए ललाट को जमीन पर शिथिल होने दें और हथेलियों के ऊपर सिर तथा पैर को फैलाकर शरीर को शिथिल करें।

इस अभ्यास को भुजंगासन (Yoga Tips) कहा जाता है।

लाभ

1. तनाव प्रबंधन के लिए सर्वश्रेष्ठ आसन है।
2. पीठ दर्द और श्वास नली से संबंधित समस्याओं को दूर करता है।
3. यकृृत (लीवर) के सभी रोगों को दूर कर रक्त बनाने की प्रक्रिया तेज करता है।
4. भोजन के बाद गैस का ऊपर चढ़ना, डकार आने पर राहत मिलना उदराध्यान तथा पाचन की कमियाॅ आदि रोगों को दूर कर उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करता है।

सावधानियां

जो लोग हर्निया ,अल्सर से पीडित हो उन्हें इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए ।

पवनमुक्तासन

पवनमुक्त का अर्थ है पवन या हवा को मुक्त करना इस आसन को करने से पेट की वायु निकालने में मदद करता है इसी कारणवष इस आसन का नाम पवनमुक्तासन (Yoga Tips) है ।

Yoga Tips

अभ्यास की विधि

1. अपनी पीठ के बल मैट या चटाई पर लेटना चाहिए।
2. दोनों घुटनों को मोडें। जितना असानी से मुड जाय ।
3.श्वास छोडते हुए दोनों घुटनों को अपने वक्षस्थल के ऊपर अपनी क्षमतानुसार ले जाय।
4.श्वास भरते हुए दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में मिलाते हुए पैरों को पकडे। अपनी क्षमतानुसार ही जोर लगाकर पकडे।
5. श्वास को बाहर छोडते हुए धीरे धीरे सिर को ऊपर उठाये और धीरे धीरे ठुडडी को घुटने से लगाने का प्रयास करें । कुछ समय तक इस स्थिति में बने रहे। जबरजस्ती न करें नियमित अभ्यास करें।
6. श्वास  को लेतें हुए सिर वापस जमीन पर लें जाय और थोडी देर विश्राम करें ।
7. श्वास को बाहर छोडतें हुए पैरों को जमीन पर लें जाए।
8. अभ्यास के अंत में थोडी देर षवासन करें।
9. कोई भी आसन अपनी षारीरिक क्षमतानुसार ही करें या योग गुरू के निर्देषानुसार (Yoga Tips) करें।

लाभ

1. पेट की वायु को बाहर निकलता है ।
2. कब्जियत को दूर करता है पाचन तंत्र को मजबूत करता है
3. पीठ एवं पेट की मांसपेषियों को मजबूत करता है।
4. हाथों और पैरों की मांसपेषियों को मजबूत करता है।
5. यह मेरूदण्ड को मजबूत करता है।

सावधनियां

उदर संबंधी व्याधि ,हर्निया ,उच्च रक्त-चाप तीव्र पीठ दर्द तथा गर्भावस्था के समय इस आसन (Yoga Tips) को न करें।

मयूरासन

इस आसन में व्यक्ति की आकृति मोर की तरह दिखाई पडती है इसलिए इस आसन का नाम मयूरासन है। इस आसन को बहुत ही सावधानीपूर्वक (Yoga Tips) बैठकर किया जाता है इस आसन में पूरे शरीर का भार हाथों के पंजों पर होता है पूरा शरीर हवा में होता है।

अभ्यास की विधि

सबसे पहले अपने दोनों हाथों को दोनों घुटनों के बीच में रखें । धीरे -धीरे हाथ के अॅगूठे और अगुलियां अंदर की ओर रखते हुए हथेली जमीन पर रखें । उसके बाद अपने दोनों हाथों की केाहनियां को नाभि केंद्र के दाएॅ और बाएॅ अच्छे से जमा लें। और अपने शरीर का भार धीरे-धीरे हाथों पर बराबर देकर आगे की तरफ झुकते हुए दोनों पैरों को सावधानी पूर्वक ऊपर की ओर अपनी क्षमता अनुसार उठाॅए । जितनी देर होल्ड कर सकते है होल्ड करें फिर पुनः सामान्य स्थिति में आये । इस अभ्यास को बार -बार करें जितनी ही अंगुलिया और हाथ की कलाई मजबूत होगी उतना ही अच्छा मयूरासन होगा । इस आसन को कभी भी जल्दबाजी में न करें । क्यांेकि पूरे शरीर का वजन इन्ही हाथों के पंजे और कलाई (Yoga Tips) पर होता है। इसलिए इस आसन का अभ्यास (Yoga Tips) अच्छे से करें तभी इस आसन को आप सब आसानी से कर पाएंगे ।

लाभ

1. मयूरासन के नियमित अभ्यास से हाथों के पंजे और कलाई बहुत मजबूत होती है।
2. मयूरासन के अभ्यास से यकृत ,अग्नाश्य ,आमाश्य और पाचन त़़ंत्र को बहुत लाभ मिलता है।
3. मयूरासन के नियमित अभ्यास से फेफडे बहुत मजबूत होते है।
4. मयूरासन के नियमित अभ्यास से मधुमेह के रोगियों के लिए लाभकारी आसन है।
5. मयूरासन के नियमित अभ्यास से पेट के रोग जैसे कब्ज,अपच ,पेट साफ न होना वायु विकार और पेट दर्द में बहुत लाभदायक होता है ।
6. मयूरासन के नियमित करने से  शरीर का रक्त संचार सुचारू रूप से रहता है ।
7. वात-पित-कफ से उत्पन्न होनेवाले रोगों म शीघ्र लाभकारी है ।
8. मयूरासन के नियमित करने से  वृ˜ावस्था में भी अच्छा स्वास्थ्य, उत्साह और शक्ति बनी  रहती है।
9. मयूरासन के नियमित अभ्यास से हाथ ,पैर,और कंधे, की मांसपेसियों में मजबूती (Yoga Tips) आती है।

सावधानी

जिन लोगों को ब्लडप्रेशर ,ह्नदय रोग और अल्सर रोग या कोई जल्द में कोई आपरेशान हुआ हो वह योग प्रशिक्षक (Yoga Tips) की देखरेख में ही करें।

शलभासन

शलभ शब्द का अर्थ टिडडी होता है जो एक प्रकार का कीडा होता है।

Yoga Tips

अभ्यास करने की विधि

1. सर्वप्रथम पेट के बल मकरासन की स्थिति में लेट जाए।
2. ठुडडी को  जमीन पर टिकाकर दोनों हाथों को पैर के नीचे रख लेें। हथेलिया ऊपर की ओर होनी चाहिए।
3. अपनी श्वास को अन्दर खीचें और पैर को अपनी क्षमतानुसार ऊपर की ओर उठायें ध्यान रहें कि घुटने मुडे न हो । अपनी क्षमतानुसार जितनी देर हो सके रूकें।
4. अपनी श्वासों को बाहर छोडते हुए पैरों को जमीन पर वापस ले आएं।
5. थोडी देर विश्राम करें पुनः अपनी क्षमतानुसार (Yoga Tips) करें।

लाभ

1. इस आसन के नियमित अभ्यास करने से पीठ की मजबूती और लचीलापन (Yoga Tips) बढाता है ।
2. हाथ और कंधों कि नसों को आराम देता है और उन्हे मजबूत करता है।
3. पाचन क्रिया को सुधरता है और पेट के अंगों को मजबूत करता है।
4. नियमित अभ्यास से रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढता है।

सावधानियंा

1. यदि जल्द ही पेट की षल्क क्रिया हुई हो तो यह आसन न करें।
2. गर्भवती महिलाएं इस आसन को न करें।

शवासन

शव शब्द का अर्थ मृत शरीर है । इस आसन को यह नाम इसलिए मिला है कि इसमे एक मृृत शरीर के समान आकार लिया जाता है । शवासन विश्राम करने के लिए है और अधिकांश पूरे योगसान क्रम के पश्चात किया जाता है एक पूरा योग का क्रम क्रियाशीलता (Yoga Tips) के साथ आरम्भ होता है और विश्राम में समाप्त होता है यह वह स्थिति है जब आपके शरीर को पूर्ण विश्राम मिलता है और तनाव से बहुत आराम मिलता है।

शवासन करने की विधि

1. सर्वप्रथम पीठ के बल लेट जाय न तकिया हो न ही किसी अन्य वस्तु सहारा हो आंखे बंद कर लेेे।
2. अपने हाथ और पैरों आरामदायक स्थिति में फैलाकर रखें। अपने हाथ घुटने पैरों और उॅगलियों को  साथ ही पूरे शरीर को अचेतन अवस्था में शिथिल छोड दें।
3. अपने हाथों को शरीर के साथ रखें परंतु वे आपके शरीर को न छुॅए । हथेलियाॅ आसमान की ओर फैली हुई हो।
4. समान्य श्वास .प्रश्वास की प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करें ।
5. अपना ध्यान शरीर के हर अंग पर धीरे धीरे लेकर जाॅए और पूरे शरीर को विश्राम दें। जब तक पूर्ण विश्राम एवं चित्त शांत (Yoga Tips) न हो जाय।

शवासन के लाभ

1. शवासन करने से व्यक्ति के सभी प्रकार के तनावों से मुक्त होता है । शरीर और मस्तिष्क दोनों को आराम मिलता है ।
2. आसन के अभ्यास से आपका षरीर पुनः एक नई ऊर्जा से भर जाता है और शरीर तनाव मुक्त होता है।
3. बाहरी दुनिया के प्रति लगातार आकर्षित मन अंदर की ओर गमन करता है इस तरह धीरे.धीरे महसूस होता है कि मस्तिष्क स्थिर हो गया है और अन्दर से षंाति मिलती है जिससे  मानसिक तनाव का कम होता है।
4. आसन शरीर को स्थिर करने का सबसे उत्तम आसन है और वात दोष को शरीर में ठीक करता है।

भस्त्रिका प्राणायाम

भस्त्रिका प्राणयाम संस्कृृत में भस्त्रिका का मतलब है ‘‘ धौंकनी ‘‘ जैसा लोहार  हवा के तेज झोको से गर्मी पैदा करता है और लोहे को गरम कर शुद्ध करता है उसी प्रकार भस्त्रिका प्राणायाम से मन साफ और प्राणिक बधाओं को हटाता है । भस्त्रिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्राणायाम (Yoga Tips) हैं ,

अभ्यास विधि

1. किसी भी शांत वातावरण में बैठ जाए। सिद्धासन ,वज्रासन,पझासन जैसे किसी सुविधाजनक आसन में बैठें ।
2. आंख बंद रखें और थोडी देर के लिए शरीर को शिथिल करे लें, मुहं भी बंद रखें ।
3. दोनों हाथों से ज्ञान मुद्रा में रखें।
4. दोनों नाक से तेज गति से श्वास लें और छोड़ें 10 से 15 बार मन में गिनती करते रहे।
5. दोनों नाक से लम्बी गहरी सांस लें और छोड़े शुरूआत में अपनी क्षमतानुसार ही करें। दिन प्रति दिन अभ्यास को बढायें।

लाभ 

1. भस्त्रिका प्राणयाम के नियमित अभ्यास से शरीर के विषाक्त पदार्थ खत्म हो जाते है।
2.  इस प्राणायाम को नियमित करने से दमा और श्वास के रोगों को दूर करता है । कमजोर फेफड़े धीरे – धीरे शक्तिशाली (Yoga Tips) हो जाते हैं ।
3. इससे शरीर को अधिक मात्रा में आक्सीजन की सप्लाई मिलती है और कार्बन बाहर निकल जाता है , जिससे रक्त शुद्धि होती है
4. इस प्राणायाम को नियमित करने से तंत्रिका तत्रं संतुलित होता है ।
5. यह गले में सूजन और कफ को भी कम करता है।

सावधानियां

1. जिनका हृदय और फेफड़ा कमजोर हो या जो रोगी हों , उन्हें इसे नहीं करना चाहिए ।
2. यह प्राणायाम खाली पेट करना चाहिए।
3. जिनको ज्यादा अस्थ्मा और उच्च रक्तचाप  और गंभीर हृदय के रोंगी हो उन्हें नहीं करना चाहिए। या योग प्रशिक्षक (Yoga Tips) की देखरेख में ही करें ।

अनुलोम विलोम प्राणायाम

इस प्राणायाम की मुख्य विशेषता है कि इसमें बाएं एवं दाएं नासिकारन्ध्रों से क्रमवार श्वास – प्रश्वास को रोककर अथवा बिना श्वास – प्रश्वास रोके श्वसन (Yoga Tips) किया जाता है ।

शारीरिक स्थिति  कोई भी आरामदायक स्थिति ।

अभ्यास विधि

सर्वप्रथम किसी भी आरामदायक स्थिति (Yoga Tips) में बैठ जाएं ।
मेरुदण्ड एवं सिर को सीधा रखें और आंखें बंद कर लें ।
कुछ गहरी श्वासों के साथ शरीर को शिथिल (Yoga Tips) कर लें ।

ज्ञान मुद्रा में बाई हथेली बाएं घुटने के ऊपर रखनी चाहिए । दाई हथेली नासाग्र मुद्रा (Yoga Tips) में होना चाहिए । अनामिका एवं कनिष्ठिका अंगुली बाईं नासिका पर रखनी चाहिए । मध्यमा और तर्जनी अंगुली को मोड़कर रखें । दाएं हाथ का अंगूठा दाईं नासिका पर रखना चाहिए ।

बाई नासिकारंध्र खोलें । बाईं नासिका से श्वास ग्रहण करें । इसके बाद कनिष्ठिका और अनामिका अंगुलियों से बाई नासिका (Yoga Tips) बंद कर लें । दाई नासिका से अंगूठा हटा कर वहां ( दाईं नासिका ) से श्वास बाहर छोड़ें । तत्पश्चात् एक बार दाई नासिका से श्वास ग्रहण करना चाहिए ।

श्वासोच्छवास के अंत में दाई नासिका को बंद करें , बाई नासिका खोलें तथा इसके द्वारा श्वास बाहर छोड़ दें । यह पूरी प्रक्रिया नाड़ी शोधन या अनुलोम विलोम प्राणायाम का एक चक्र है ।

यह पूरी प्रक्रिया चार बार दोहराई (Yoga Tips) जानी चाहिए ।

अनुपात एवं समय

प्रारम्भिक अभ्यासियों के लिए श्वासोच्छ्वास की क्रिया की अवधि (Yoga Tips) बराबर होनी चाहिए ।

धीरे – धीरे इस श्वासोच्छ्वास क्रिया को क्रमशः 1 रू 2 कर देना चाहिए ।

श्वसन

श्वसन क्रिया मंद , समान एवं नियंत्रित होनी चाहिए । इसमें किसी भी प्रकार का दबाव या अवरोध (Yoga Tips) नहीं होना चाहिए ।

लाभ

मन में निश्चलता लाता है और शांति प्रदान करता है साथ ही एकाग्रता बढ़ाने में भी सहायक है ।
जीवन शक्ति बढ़ाता है और तनाव एवं चिंता के स्तर को कम करता है ।
यह कफ विकार को भी कम करता है।

कपालभाति प्राणायाम

कपालभाति प्राणायाम  के लिए शारीरिक स्थिति कोई भी आरामदायक स्थिति सि˜ासन,पद्मासन,सुखासन,वज्रसान (Yoga Tips) में बैठ जाएं ।

अभ्यास करने की विधि

1. अपनी रीढ की हडडी को सीधा रखते हुए किसी भी आसन में आरामदायक बैठ जाएं ।
2. अपनी अंाखे बंद कर पूरे शरीर को शिथिल कर लें शरीर में किसी प्रकार का तनाव नही होना चाहिए।
3.  एक लम्बी गहरी साॅस ले । सांस को छोडते हुए पेट को अंदर की ओर खीचे । अपने पेट को इस प्रकार से अंदर खीचे की वह रीढ की हडडी को छू ले । जितना हो सके आराम से उतना ही करे पेट की मासपेशियों के सिकुडने महसूस कर सकते है।
4. जैसे ही पेट को मांसपेशियों को ढीला छोडते हो सांस अपने आप ही फेफडों में पहुच जाती है।
5. कम से कम तीव्र श्वास छोडने की 20 आवृृत्तियाॅ पुरी करनी चाहिए।
6. गहरा श्वास लें और धीरे -धीरे श्वास छोडे और विश्राम करें ।
7. कपालभाति प्राणायाम करते समय जोर से साॅस को बाहर छोडे ।
8. अपनी ध्यान बाहर की जाती हुई सांसो पर रखे।

कपालभाति प्राणायाम के लाभ

1. कपालभाति प्राणायाम (Yoga Tips) कपाल को शु˜ करता है।
2. नाडियों का शु˜िकरण करता है।
3. यह तंत्रिका तंत्र को मजबूत करता है पाचन अंगो को शक्तिशाली बनाता है।
4. रक्त परिसंचरण को ठीक करता है चेहरे पर चमक बढाता है ।
5. नियमित करने से पेट की चर्बी कम हो जाती है।
6. कपालभाति  प्राणायाम नियमित करने से पूरे शरीर क कायाकल्प करता है।
7. जुकाम ,अस्थमा , एवं श्वास नली संबंधी संक्रमाण में बहुत ही लाभदायक होता है।
8. मन शांत रहता है।
9. कपालभाति प्राणायाम (Yoga Tips) नियमित करने से मोटापा कम हो जाता है।

सावधानियां

1. हृदय संबंधी व्याधियों में , मिर्गी  आने पर ,चक्कर आने पर ,नासिका में रक्त आने पर,मासिक धर्म के दौरन भी यह प्राणायाम (Yoga Tips) नहीं करना चाहिए।

भ्रामरी प्राणायाम

भ्रामरी शब्द भ्रमर से लिया गया है , जिसका मुख्य अर्थ है भौंरा । इस प्राणायाम के अभ्यास के समय निकलने वाला स्वर भ्रमर के गुंजन (Yoga Tips) के स्वर की तरह होता है ।

शारीरिक स्थिति

कोई भी आरामदायक स्थिति ।

अभ्यास विधि

सर्वप्रथम किसी भी आरामदायक स्थिति (Yoga Tips) में आंखें बंद कर बैठ जाएं ।
नासिका के द्वारा लम्बा गहरा श्वास खींचें ।
नियंत्रित ढंग से श्वास को धीरे – धीरे बाहर छोड़ते हुए भौंरे जैसी आवाज निकालें । इस प्रकार भ्रामरी प्राणायाम का एक चक्र पूर्ण होता है ।
इसे और 4 बार दोहराएं ।

ये भ्रामरी प्राणायाम (Yoga Tips) का सरल अभ्यास है ।

अभ्यास विधि

सर्वप्रथम किसी भी आरामदायक स्थिति में आंखें बंद करके बैठ जाएं । नासिका के द्वारा लंबा गहरा श्वास लें ।

चित्र में दिखाए अनुसार अंगूठों से कर्णछिद्र बंद कर लें । तर्जनी अंगुली को आंखों के कोनों पर रखें और दोनों मध्यमा अँगुलियों को नासा रन्ध्रों पर रखें । अनामिका ऊपर वाले होंठ के ऊपरी हिस्से पर और कनिष्ठा नीचे वाले होंठ के पास लगायें । इसे षणमुखी मुद्रा कहते हैं।

धीरे – धीरे नियंत्रित रूप से श्वास को बाहर छोड़ते समय भौंरे जैसी आवाज (Yoga Tips) निकालें। इस तरह भ्रामरी प्राणायाम का एक चक्र पूर्ण (Yoga Tips) होता है । इसे और 4 बार दोहराएं ।

लाभ

1. भ्रामरी प्राणायाम का अभ्यास तनाव से मुक्त करता है और चिंता , क्रोध एवं अतिसक्रियता (Yoga Tips) को घटाता है ।
2. इस प्राणायाम में भौंरे जैसी आवाज का प्रतिध्वनिक प्रभाव तंत्रिकातंत्र एवं मस्तिष्क पर लाभकारी होता है यह महत्त्वपूर्ण शांतिकारक (Yoga Tips) अभ्यास है
3. यह जो तनाव संबंधी विकारों को दूर करने में लाभकारी होता है ।
4. यह एकाग्रता और ध्यान के लिए एक उपयोगी प्रारंभिक प्राणायाम (Yoga Tips) है ।

सावधानियां

नाक एवं कान में यदि किसी प्रकार का संक्रमण हो तो इस आसन (Yoga Tips) को नहीं करना चाहिएं।

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